इस समूह की महिलाओं के लिए बकरियां एटीएम से कम नहीं

Update: 2016-10-08 11:04 GMT
बदायूं की महिलाएं समूह बनाकर पाल हैं बकरियां

उषा राय

बदायूं। यूपी के जिला बदायूं के गाँव नैथू में दस महिलाओं के एक स्वयं सहायता समूह से बकरी पालन का व्यापार शुरू किया। ये महिलाएं अपनी बकरियों को एटीएम कार्ड कहकर पुकारती हैं। 120 महिलाओं के इस स्वयं सहायता समूह के पास ऋण सुविधा उपलब्ध होने के बावजूद इतनी क्षमता नहीं थी कि बड़े दुधारू जानवर जैसे गाय, भैंस आदि खरीद सकें। इसलिए उक्त समूह ने यह फैसला किया कि बकरी-पालन ही किया जाए और इस तरह इस समूह ने एक बकरी चार से पांच हजार रुपए में और बकरी का बच्चा हजार रुपए में खरीदा।

स्वयं सहायता समूह की सदस्य रुखसाना अपने अतीत को याद करते हुए कहती हैं, “बिस्मिल्लाह समूह की दस महिला सदस्य वर्ष 2014 में राजीव गांधी महिला विकास परियोजना के अंर्तगत बकरी पालन का प्रशिक्षण लेने गई, वहां उन लोगों ने हमें ऋण के रूप में 15000 रुपए व्यापार शुरू करने के लिए दिए जिसमें से मैनें 5000 हजार रुपए के हिसाब से तीन बकरियां ख़रीदीं।” वो आगे बताती हैं, “एक साल में हर बकरी ने दो दो बच्चे दिए, इस तरह दो वर्षों में मैनें बकरी के चार बच्चे 22,000 हजार रुपए में बेच दिए और फिर उन पैसों का एक बड़ा हिस्सा दोबारा अपने व्यापार में लगाते हुए छह बच्चे और खरीद लिए और बकरीद के अवसर पर जब बकरों की मांग बढ़ी तो 50 साल पुराने और प्रसिद्ध उल्का पूरे बाजार में जहां मुंबई और दिल्ली जैसे बड़े शहरों से व्यापारी आते हैं उनके हाथों बकरियों को अच्छी कीमत पर बेचा और उचित मूल्य पर दूसरे स्वस्थ बछड़े खरीद लिए”।

बकरी पालन से आत्मनिर्भर बन रहीं महिलाएं

बिस्मिल्लाह समूह की सभी दस महिला सदस्य इस समय बकरी पालन कर रही हैं, चूंकि बकरियों के पालन पोषण और अगर वह बीमार हो जाएं तो डॉक्टरी इलाज की सारी जिम्मेदारी महिलाओं और बच्चों पर होती है। इसलिए रुखसाना अब इरादा कर रही है कि रायबरेली जाकर पशु उपचार का प्रशिक्षण ले और अपने गाँव के पशुओं का इलाज कर गाँव वालों की परेशानी कम करते हुए अपनी आय में भी वृद्धि करें।

बकरीद पर तोतापरी बकरों की एक जोड़ी 7 लाख रुपए में बिकी

रुखसाना के “बिस्मिल्लाह समूह” ही की तरह थालया नगला गाँव में महिलाओं का एक दूसरा समूह “सरस्वती समूह” के नाम से स्थापित है। इस समूह की महिलाओं ने 15000 रुपए में छह बकरी के बच्चे 5000 रुपए में दो बकरे खरीदे, और 10000 रुपए अन्य कार्यों में लगाकर कुल 30,000 रुपए से अपना व्यापार शुरू किया।

बिस्मिल्लाह समूह की दस महिला सदस्य वर्ष 2014 में राजीव गांधी महिला विकास परियोजना के अंतर्गत बकरी पालन का प्रशिक्षण लेने गई, वहां उन लोगों ने हमें ऋण के रूप में 15000 रुपए व्यापार शुरू करने के लिए दिए जिसमें से मैनें 5000 हजार रुपए के हिसाब से तीन बकरियां ख़रीदीं।
रुखसाना, सदस्य, स्वयं सहायता समूह

बकरी पालन के इस व्यवसाय में ज्यादातर महिलाएं एक विशेष प्रकार की बकरी पालती हैं जिसे “बारबरा पीढ़ी” कहा जाता है, उसके कान छोटे और रंग चितकबरा होता है। इस पीढ़ी की बकरी साल में दो बच्चे और दूसरी पीढ़ी के झुंड से अधिक दूध देती हीं। उक्त गाँव में भी बकरी का दूध 100 रुपए लीटर मिलता है जबकि बरसात के मौसम में जब डेंगू बुखार का प्रकोप बढ़ जाता है तो दूध की कीमत 600 लीटर तक पहुंच जाती है। महिलाएं बकरियों को “कच्ची चांदी” के नाम से भी बुलाती हैं, क्योंकि इससे आय अच्छी खासी हो जाती है।

बकरियों की दूसरी पीढ़ी “तोतापरी” के नाम से प्रसिद्ध है। यह बकरियों की नस्ल में शाही नस्ल मानी जाती है। इन्हें बड़े लाड़-प्यार से पाला जाता है। इनके लिए एयरकंडिशन कमरों में पलंग का प्रबंध किया जाता है जिस पर यह बैठती हैं और खाने के लिए दूध-जलेबी दी जाती है। बदायूं जिले के ब्लॉक के नजदीक एक गाँव में इस बकरीद के अवसर पर तोतापरी बकरों की एक जोड़ी 7 लाख रुपए में बिकी है। इसलिए कहा जा सकता है कि बकरियों ने अपने मालिक को अच्छी ईदी दी।120 महिलाओं के इस स्वयं सहायता समूह के पास ऋण सुविधा उपलब्ध होने के बावजूद इतनी क्षमता नहीं थी कि बड़े दुधारू जानवर जैसे गाय, भैंस आदि खरीद सकें।

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